बाबूराम सँपेरे, ओ!
कहाँ लगाए फेरे, ओ!
इधर ज़रा सा आओ आप
मुझे चाहिए दो ठो साँप।
साँप आँख से सूने हों
बेसींग- नाखूने हों।
ना सरकें ना लहराएँ
नहीं किसी को डस खाएँ।
फों-फों करें न मारें फन
दूध-भात का लें भोजन।
ऐसे साँप मिलें तो ला
डण्डा मार करूँ सीधा।
सुकुमार राय की कविता : बाबूराम सापुड़े(বাবুরাম সাপুড়ে) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित