हर मुश्किल पार करने के बाद
औरत आकर छिटकती है
अपने अकेलेपन पर,
न लिख पाने की हालत में उसपर कोई
कविता
शायद इसलिए कि यह अकेलापन बोनस
में मिला है उसे, विरासत में
मिली उस चुप्पी के साथ, जो उसके
औरत होने का पहला प्रमाण है
जबकि यूँ ही नहीं चुनती वह उसे
अकसर जानबूझकर
जैसे चुनती है वह अपनी लिपस्टिक का रंग
या कोई मैचिंग ड्रेस
उम्र के हर पड़ाव पर अकेले
ही खड़ा होना होता है उसे
बाहर मौजूद बसावट के बावजूद
जिसपर हर पल अपना जादू बिखेरती
आगे बढ़ती रहती है वह
जैसे एक ख़ुशनुमा तितली
उड़ जाती हो फूल से, अपने सारे
रंग बिखेरकर।