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अथरो-बिथरो / अमरेन्द्र

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अथरो-बिथरो नीमा गेलै नीम तोड़ेॅ
अथरो बिथरो सीमा गेलै सीम तोड़ेॅ
दिन कत्तेॅ चढ़ी गेलै, खैलेॅ छै नै कुछुवे
दोनों के हिस्सा के रोटी रखलोॅ छै होने
सुनेॅ मधु, आलो सुनेॅ, जाय केॅ देखै नी
टिंकी केरोॅ बाबूजी सेॅ दौड़ी केॅ पूछै नी
याद दोनों बेटी केरोॅ मन केॅ मरोड़ेॅ
अथरो बथरो नीमा गेलै नीम तोड़ेॅ।

सुनेॅ रिंक्की सुनेॅ, सुनेॅ सुनेॅ किट्टी, अप्पू
मुन्ना सुनेॅ, चुन्ना सुनेॅ, सुनेॅ तहूं धरमू
पूछी आबैं खोजी आबैं हिन्नेॅ हुन्नेॅ सगरो
भोथरी के बारियो मेॅ देखी लियें आरो
कत्तोॅॅ मना करोॅ मतुर जायलेॅ नै छोड़ेॅ
अथरो बथरो नीमा गेलै नीम तोड़ेॅ।

गालोॅ के नै सूखेॅॅ दै छै आँख कानी-कानी
बहै जेना चाननोॅ में यादोॅ केरोॅ पानी
बाबा केॅ चढ़ैबै जोॅल नीमा-सीमा ऐतै
देवी केॅ चढ़ाय ऐबै जेहनै मिली जैतै
घरोॅ मेॅ बेटी लेॅ बाबू माथोॅ फोड़ेॅ
अथरो बथरो नीमा गेलै नीम तोड़ेॅ ।