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अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ / परिचय

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अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की बहुचर्चित—कृति ‘प्रिय प्रवास’ खड़ी बोली का पहला महाकाव्य है। साहित्य के तीन महत्त्वपूर्ण—भारतेंदु, द्विवेदी व छायावादी-युगों में फैले विस्तृत रचनाकाल के कारण वे हिंदी-कविता के विकास में नींव के पत्थर माने जाते हैं। हरिऔध जी ने नाटक व उपन्यास लिखे, आलोचनात्मक लेखन किया और बाल-साहित्य भी रचा किंतु ख्यात कवि के रूप में हुए। उन्होंने संस्कृति-छंदों का हिंदी में सफलतम प्रयोग किया। आम बोल-चाल में रची हरिऔध जी की रचनाएं—‘चोखे चौपदे’ व ‘चुभते चौपदे’ उर्दू जुबान की मुहावरे की शक्ति को कुशलता से उकेरती है। उनका जन्म आजमगढ़ उ.प्र. के निजामाबाद में 15 अप्रैल, 1865 को हुआ। 16 मार्च, 1947 को अयोध्यासिंह उपाध्याय ने इस दुनिया से विदा ली।

कहें क्या बात आंखों की, चाल चलती हैं मनमानी

सदा पानी में डूबी रह, नहीं रह सकती हैं पानी

लगन है रोग या जलन, किसी को कब यह बतलाया

जल भरा रहता है उनमें, पर उन्हें प्यासी ही पाया