Last modified on 17 मार्च 2008, at 10:13

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते / अकबर इलाहाबादी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:13, 17 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं दे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते
अर्मान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मूँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने'
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते