Last modified on 22 जुलाई 2016, at 12:18

माया / संजय चतुर्वेद

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गाढ़े लेपों और प्राचीन मसालों की गंध में
वह मिस्र के शाही ख़ानदान की
ताज़ा ममी जैसी दिखाई दी
उसकी गतियों में भी
जीवन से अधिक निष्प्राणता की उपस्थिति थी
निर्जीव जगत की विराटता
उसे एक विराट सच्चाई देती थी
जीवन तुच्छ था और दहशत से भरा हुआ था
चमक और महक के निर्जीव आतंक में
रक्त, लार और विचार जैसे जीवद्रव्य झूठ थे ।

1998