Last modified on 25 जुलाई 2016, at 03:25

हँसी / गीताश्री

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:25, 25 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीताश्री |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक आश्चर्य लोक के प्रवेश द्वार सी है हँसी
मैं प्रवेश करती हूं और सन्न रह जाती हूँ।
दुखों की तहेँ लगा कर कितने आराम से हँस रहा है कोई
जैसे कोई कचरा बीनने वाला दुर्गन्ध की गठरी पर बैठा
गहरी नींद में फूलों की ख़ुशबू महसूसता हो

एक रसायनिक प्रक्रिया-सी है हँसी
हँसते हुए छिटकते रहते हैं रसायन
जैसे अथिरापल्ली का विराट झरना
चट्टानों पर चोट खाता है
हँसी की तरह उसके छींटे फैल जाते हैं अनन्त में

चकित करती है वह हँसी
जो छुपाए होती है अपने विराट में कहीं ढेर सारा नमक
 एक उदार हँसी की आँखों में झाँकना
 दुःख का चरम है एक खिलखिलाती हँसी