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भानुदयप्रति / युद्धप्रसाद मिश्र

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होऊ दुर्दिनका अतिक्रमणमा उत्पन्न भानूदय
धोऊ कल्मष द्वन्द्वता, दुरुहता, दुर्भावना संशय
छोऊ निर्मलता प्रदान गर्दै साहित्यका प्राणमा
भत्केको युग भारले हृदयको प्रासाद निर्माणमा
ताता रक्त शहीदका दहनको उद्गार माथि बल
सल्केको गर सिद्ध आर्तहरूमा उद्धिग्न दावानल
बुद्धी ब्यापक बन्न राष्ट्र उरमा हक्ती गरी प्रज्ज्वल
पल्टाई दिन धर्ति पोख गहिरा अन्तस्करणका बल