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कभी चोटिल होगा मन / भावना मिश्र

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कभी चोटिल होगा मन
कभी छिल जाएगा तन
कभी हम होंगे निराश
कि एक अदद ज़िन्दगी
का क्या कर डाला,

काँटों के आगोश में
सुकून की तलाश
जैसे बेमतलब के काम में
बसर होनी है
बची हुई शै..
जो ज़िन्दगी है,

करते भी क्या..?
कि जीवन के सारे सम्मोहन
खिले हैं कँटीली झाड़ियों पर