लगता है आज रात भर मेँ सूरज को किसी ने कुरेद दिया । जाने क्योँ आज पौ फुट्ते ही किसी ने सूरज को रास्ते पे जमे पानी मेँ फेँक दिया ।
कहते हैँ यह तो मात्र शुरुवात है।
सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखोँ तक पहुँचना है सूरज – कल सोचा हुवा पर देख न पाया हुवा दृष्टी, को अब खुलना है ।
गुसलखाने में कहीँ बादल बन कर रहा हुवा समय सूरज के स्पर्शोँ को पिघलाने दौड कर बाहर आ रहा है ।
कहते हैँ तूम आ तो चुके हो लेकिन अभी खिलना बाकीँ है ।