Last modified on 28 जुलाई 2016, at 05:45

रात / नलिनीकान्त

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:45, 28 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नलिनीकान्त |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झुग्गी-झोपड़ी वास्तें
लै केॅ ऐलै रात
शान्ति-सौगात ।
डुबी गेलै चुप्पेचाप
सन्नाटा में फुटपाथ
आवी गेलै अन्हरिया रात ।
बुढ़वा, रोगी, भिखारी केॅ
आजो नै
मिलेॅ सकलै दूध-भात ।
कतना बुतरू झुग्गी केरोॅ
कानि-कानि सुती गेलै
खाय केॅ माड़-भात ।
चनरमा कहै छै
भुखलोॅ-रुठलोॅ बुतरू सिनी केॅ
सरंगोॅ सें झात ।
भुखलोॅ लोगोॅ के माथा पर
रोशनी केरोॅ गमला
धन्य-धन्य बारात !
खुशी में माँतलोॅ
स्टार होटलोॅ रोॅ
नाँचोॅ सें भरलोॅ रात ।