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उजड़ा / कपिलेश्वर 'कपिल'

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उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।
रहे जानवर मर्दो मर्दा,
खैनी खा कि पान में जर्दा
खैलोॅ मुहो कि कहियो मानथौं
ठोर-दाँत सब सप-सप करथौं
जत्तेॅ रोकभौ माँगथै रहथौं
कहोॅ कि केकरोॅ बाग उजड़तै
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।

बकड़ी पोशी देखल्हो भैया
बकड़ी जोड़ी बकड़ी कहिया
बकड़ी खोली इज्जत कहिया
बकड़ी स पैछा छै जल्दी
पैसा लूटी, लगावै हल्दी
नाज करतै देह सप-सप करतै
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।

नेता रहै कि रहै प्रशासन
खैलोॅ मुहों पर केकरोॅ शासन,
साँच रहै कि झुट्ठोॅ भाषण,
सुनलोॅ कान प केकरोॅ शासन
महिना छोड़ि महिना प रासन
जे खैने छै, खैथे रहतै
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।

शकुनि कि सब मरिये जैतै
बीज खतम कि ओकरे भेलै
भाय-भाय में सीमा खातिर
पंच बनि समझाइये देलकै,
जे जनमल छै लड़वे खातिर
मुँह मुनी केॅ कैहने रहतै ।
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।

जेकरा छै लाजोॅ स ममता
ऊ नाज केकरो बाग उजाड़तै
बन्हि केॅ आपना आपन्है रखतै
खोली त दौ हुनका खुट्टा स
दोसरा के कि पत्तो खैतै ।
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।

कहै ‘‘कपिल’’ छौं कवि भाय स,
जँ ममता छौ जगत भाय स
जे रीढ़ छिकै जन-जन समाज के
समैझ-समैझ खतड़ा क भैया
कुत्तो जोकना भुकथैं रहिहो
नाज त गणपति कानथै रहतै ।
उजड़ा जे छै उजड़े रहतै
खुट्टो तोड़ी खैवे करतै ।