Last modified on 29 जुलाई 2016, at 07:38

वर्षा / शैलेन्द्र शान्त

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:38, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र शान्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बादल गरजा
बिजली चमकी
मगन हुई बरसा रानी
डूब गई राजधानी
दुखी हुए नागरिक
महानागरिक की बढ़ी परेशानी

ख़ुश हुआ खेतिहर
मन मोर-सा नाचा
सपने ने ली अंगड़ाई
इस मर्तबा
थोड़ा-बहुत कर्ज़
चुक ही जाएगा भाई।