Last modified on 25 मार्च 2008, at 23:35

भगवान तुम्हारे मन्दिर में.../ भजन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 25 मार्च 2008 का अवतरण (new)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भगवान तुम्हारे मन्दिर में, मैं तुम्हें रिझाने आई हूँ ।

वाणी में है माधुर्य नहीं, पर विनय सुनाने आई हूँ ।।

पूजा के लिए न पास फूल, फिर भी तो साहस देखो ।

सब के सन्मुख पानी होकर, मैं तुम्हें मनाने आई हूँ ।।

प्रभु का चरणामृत लेने को, दासी पर है जलपात्र नहीं ।

केवल अपना यह हृदय खोल, सब बन्ध दिखाने आई हूँ ।।