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तुम्हारी हृदयरेखा / आरती मिश्रा

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कितनी घनी और गहरी रेखाओं का जाल बुना है
तुम्हारी हथेलियों में
छोटी-बड़ी महीन-महीन रेखाएँ
लगता है नन्हें बच्चे ने कोई
काग़ज़ गोद दिया हो
मेरी आदत में शुमार हो चला है इनसे खेलते रहना
छूना टटोलना खरोंचना
कुछ पढऩे की कोशिश करते रहना
अटपटी हरकतों में मेरी यदा-कदा तुम भी उलझ जाते हो
मेरे साथ-साथ कुछ पढऩे की कोशिश करने लगते हो
कुछेक के तो नाम भी पता हैं तुम्हें
बाहर बारिश हो रही है
मैं शीशे के पार गिरती बड़ी-बड़ी बून्दों को देखने लगी
आज की रात अमावस जैसी काली और ख़ौफ़नाक थी
और बिल्कुल भी डर नहीं रही थी मैं
तुम्हारे हाथ की रेखाओं के सौ-सौ स्पर्श ने
थपथपा दिया मुझे
उनमें से एक शायद वह हृदयरेखा होती है
रात भर मेरे साथ जागती है
जबकि तुम गहरी नींद में सो चुके होते हो
वह मेरा हाथ थामकर
वही नज़्म दोहराती है
जिसे मैं बार-बार सुनना चाहती हूँ