{{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=
अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता
कभी-कभी रातों में उसका
हाथ पकड़ कर सोता
आसमान की सारी बातें
वो मुझको बतलाता
रूठ गए तारों के किस्से
गा कर मुझे सुनाता
छुट्टी के दिन मुझको लेकर
दूर गगन में जाता
अन्तरिक्ष के नीले वन में
सैर मुझे करवाता
पास किसी तारे के घर में
रुक कर खाना खाते
खा पी कर जल्दी से वापस
अपने घर आ जाते
बिजली जाती घर के अन्दर
उसको हम ले आते
और चाँदनी में हम सारे
खुल कर हँसते-गाते
एक झिंगोला सिलवा देते
जाड़ों में जब रोता
अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता