अनजाने में हुई भूल से
हवा, धूल से, आग फूल से
हर जनहितधर्मी उसूल से
नित-नित नई खुराक लिए चल
पानी दार जबाव दिए चल।
चल तेरा रास्ता बड़ा है
सम्मुख है भूगोल कर्म का
अगल-बगल इतिहास खड़ा है
जिम्मेदार कदम धर आगे
हर मुश्किल आसान किए चल।
चल ! चलने से बल मिलता है
मिलती जहाँ शक्ति को धरती
मुरझाया बंजर खिलता है
गंध स्वयं आकार गढ़ेगी
द्वेष-क्लेश का जहर पिए चल।