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कैटवाक / राकेश रंजन

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फ़ैशन शो के

जगमग मंच से उतरकर

दबे पाँव

इच्छाओं के अन्धेरों में

टहलती हुई

बिल्लियाँ


खरहे की खाल-सी मुलायम

बाघिन के पंजों-सी क्रूर

खंजर-सी नंगी

चमकीली


हर तरफ़ अन्धेरा

हर तरफ़ बिल्लियों की

नीली-भयानक

आँखों की चमक


प्रकाश-पथ के पथिक

ठमके हुए सरेराह

उनकी राहें

काटती हुई बिल्लियाँ

महान सिंहों की नस्लें

कुत्तों के झुंड में

तब्दील होती हुईं...