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असाधारण स्त्री / माया एंजलो

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ख़ूबसूरत स्त्रियाँ आश्चर्य से भर जाती हैं
मेरे रहस्य को लेकर
मैं सुन्दर नहीं हूँ और न फ़ैशन मॉडल की तरह
मेरा जिस्म है
परन्तु जब मैं उन्हें बताना शुरू करती हूँ
वे सोचती हैं , मैं झूठ बोल रही हूँ ।

मैं कहती हूँ —
यह मेरी बाँहों के बस में है
मेरे नितम्बों के आकार
मेरे क़दमों की गति
मेरे होठों की गोलाई में है ।
मैं एक स्त्री हूँ
असाधारण रूप से।
असाधारण स्त्री
यह मैं हूँ ।

मैं एक कमरे में प्रवेश करती हूँ
एकदम शान्तचित्त तुम्हारी तरह
और जहाँ तक पुरुषों का सम्बन्ध है
वे खड़े हो जाते हैं या
घुटनों के बल बैठ जाते हैं।
फिर वे मण्डराने लगते हैं मेरे चारों तरफ़
जैसे मधुमक्खियों का एक छत्ता ।

मैं कहती हूँ —
यह आग है मेरी आँखों में
और चमक मेरे दाँतों में
मेरी कमर की लचक
और एक आनन्द मेरे पैरों में
मैं एक स्त्री हूँ
असाधारण रूप से ।
असाधारण स्त्री
यह मै हूँ ।

अब तुम समझ सकते हो
मेरा सिर झुकता क्यूँ नहीं है।
मैं चीख़ती नहीं और न हड़बड़ी में रहती हूँ
और न तेज़ आवाज़ में बोलती हूँ ।
जब तुम मुझे कहीं से गुज़रते हुए देखो
तुम्हे गर्व होना चाहिए ।

मैं कहती हूँ —
यह मेरी सैण्डिल की खटखट में है
मेरी जुल्फ़ों के पेंचोखम में है
मेरी हथेलियों में है ,
क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ
असाधारण रूप से ।
असाधारण स्त्री
यह मैं हूँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन