सृष्टि की छेकै
प्रकृति के विकार?
सच्चा संसार?
हौ पुरुष के
जे नई कुछ करै छै
नै तेॅ मरै छै?
गजबे छै ई
परमाणु-विस्तार
सृष्टि-संहार।
जगत के अर्थ
कन्हौ नै थोड़ोॅ सुख
दुःख ही दुःख।
जबेॅ प्रकृति
अपना केॅ समैटे
दुनिया मेटै।
पुरुष शिव
शव नांखि रहै छै
नारी रमै छै।
एक्के नारी
सोलह ठो संतान
हे भगवान।
सुखी वही छै
दुःख माथोॅ पे धरै
बैर नै करै।