Last modified on 26 सितम्बर 2016, at 23:39

लोकतंत्र / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 26 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अजबे तंत्र
कोयला केरोॅ लूट
सब्भै केॅ छूट

हाथ की धोबौ
मुहोॅ पर कालिख
नागो के बिख।

ई केन्हौॅ राज
सब ठां छेदे-छेद
बड़का भेद।

के छै दहरोॅ
खेल आकि खेलाड़ी
तिनका में दाढ़ी।

जनता लली
भ्रष्टाचार-घोटाला
बिख रोॅ प्याला

देश कहाँ छै
केकरा छै मतलब
बेमत सब।

ई तेॅ तय छै
जबेॅ त्याग रोॅ मंच
ते लोकतंत्र।