Last modified on 2 अक्टूबर 2016, at 08:18

दूसरा प्यार / चिराग़ जैन

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:18, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की कविता)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिर से मन में अंकुर फूटे, फिर से आँखों में ख्वाब पले
फिर से कुछ अंतस् में पिघला, फिर से श्वासों से स्वर निकले
फिर से मैंने सबसे छुपकर, इक मन्नत मांगी ईश्वर। से
फिर से इक सादा-सा चेहरा, कुछ ख़ास लगा दुनिया भर से
फिर इक लड़की के इर्द-गिर्द, जीवन के सब प्रतिमान बने
फिर इक चेहरे के हाव-भाव, सुन्दरता के उपमान बने
मुझको लगता था ये सब कुछ शायद इस बार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से मेरे मोबाइल में इक नम्बर सबसे ख़ास बना
फिर से बदला हर पासवर्ड, इक नाम मेरा विश्वास बना
फिर से इक मद्धम रिंगटोन, आँखों की चमक। बढ़ाती थी
फिर से इक लड़की की फोटो, मुझसे घण्टों बतियाती थी
उसको मैसिज कर सोना था, उसके मैसिज से जगना था
उसका हर मैसिज, हर इक मेल, बस अलग संभाले रखना था
सोचा था वो इक एपिसोड, रीप्ले हर बार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से इक चंचल लड़की की हर बात सुहानी लगती थी
केवल वो लड़की समझदार, दुनिया दीवानी लगती थी
उसकी मम्मी, उसके पापा, उसकी हर चीज़ ज़रूरी थी
अपने जीवन के ख़ास काम भी केवल इक मजबूरी थी
फिर से मैं सारी दुनिया की नज़रों में बस बेकार हुआ
फिर से ख़र्चे दोगुने हुए, आमदनी घटी, उधार हुआ
मेरा मस्तिष्क मेरे दिल के हाथों लाचार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
फिर से कुछ बेमतलब बातें, अधरों पर बन मुस्कान खिलीं
फिर से इक लड़की की यादें, दिल के। काग़ज़ पर लिखी मिलीं
फिर से नयनों की कोरों पर, इक आँसू आ ठिठका, ठहरा
फिर से उसकी स्मृतियों ने स्वप्नों पर बिठलाया पहरा
फिर से मेरी कविताओं का रस बदला और शृंगार सजा
फिर से गीतों में पीर ढली, फिर से ग़ज़लों में प्यार सजा
मेरे कवि पर इक लड़की का, इतना अधिकार नहीं होगा
पहले के अनुभव कहते थे, अब मुझको प्यार नहीं होगा
शायद मेरी मन-बगिया में कुछ पुष्प भाव के झरने थे
शायद मेरे काव्यांगन में कुछ अनुपम गीत उतरने थे
शायद यह फूल मुहब्बत का खिलना था और बिखरना था
शायद यह सब निर्धारित था, मिलना था और बिछड़ना था
शायद मेरे मन में अहसासों की इक खण्डित मूरत थी
शायद मुझको इस अनुभव की पहले से अधिक ज़रूरत थी
शायद मुझसे फिर कोमल भावों का सत्कार नहीं होता
सब अनुभव आधे रह जाते गर फिर से प्यार। नहीं होता।