Last modified on 24 अक्टूबर 2016, at 22:39

जिवलेवा / मुरली चंद्राकर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 24 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुरली चंद्राकर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिवलेवा होगे ऐ बहिनी सोलहो सिंगार
ये मौसम के बछर उमरिया होवथे खुंवार
पर्सा फुल ह चबढी चबाथे, चिढ चढ़ाथे सेम्हर
बिजराथे गुलमोहर मेंहंदी हदियाथे हरदी केसर
जिवलेवा होगे रे, जिवलेवा होगे हाय! राम
ये छत रंगीया उमर चुनरिया होगे तार तार
जीव लेवा होगे ऐ बहिनी सोलहो सिंगार