Last modified on 19 नवम्बर 2016, at 16:55

नंगा सलीब / मंगलमूर्ति

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:55, 19 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगलमूर्ति |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोचता हूँ एक लम्बी कविता लिखूं-
पर जो इस जीवन से थोड़ी छोटी हो,
जिससे दुहरा-तिहरा कर नाप सकूं
इस जीवन की पूरी लम्बाई को
लेकिन कैसे नापूंगा उसकी लम्बाई-
क्या वह लम्बा होगा किसी ठूँठ जितना
झड चुके होंगे जिसकी चंचरी से
हरे, मुलायम, कोमल सभी पत्ते-
और वह खडा होगा विस्मित-चिंतित
एक कौवा-उड़ावन जैसा ठठरी-सा-
झींखता-घूरता-झुँझलाता-बदहवास
एक नंगे सलीब की तरह अकेला ?

समझ में नहीं आता
क्या उसका अपना जीवन ही
टंगा होगा उस सलीब पर?

नहीं, नहीं, उसको नापना
उसकी पूरी पैमाइश करना
कविता के बूते की बात नहीं!

कविता भला कैसे नाप सकेगी
उसकी अनिश्चित, अधूरी लम्बाई?

तब फिर क्या होगा ?