हम, जिन्हें मालूम नहीं साहस,
आनन्द जहाँ निर्वासित,
पड़ा रहता है कुण्डली मारकर अकेलेपन के कवच में
जब तक प्रेम उपस्थित नहीं कर देता
हमारे सामने अति पावन-स्थल
हमें मुक्त करने जीवन में।
आता है प्रेम
और साथ होते हैं सिलसिले अतिहर्ष के
अतीत के सुख की स्मृतियाँ
दुख के प्राचीन इतिहास।
किन्तु यदि हम हों साहसी,
प्रेम हमारे मन से
भय के बन्धनों को तोड़ देता है।
प्रेम-प्रकाश की आभा में
हम मुक्त हो जाते हैं अपनी भीरुता से
हम में जागता है साहस
और अकस्मात् हम पाते हैं
कि प्रेम है हमारा मूल्य
जिससे हम हैं और रहेंगे सदा।
अन्तत:
यह केवल प्रेम है
जो रखता है हमें मुक्त।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’