वीणापाणि ! भारती ! माँ गोमती ! माँ श्वेतानन!
ज्ञानमुद्रा ! वरप्रदा ! माँ शारदे ! तुमको नमन l
मैं अकिंचन, निरालम्बी सामने तेरे खड़ी,
माँ मुझे तुम दो सहारा, मैं चरण में हूँ पड़ी,
सर्वव्यापी घोर तम में चाहती हूँ मैं शरण l
तुम कला साहित्य और संगीत की हो चेतना,
देवता भी बनके साधक करते तेरी साधना,
आँसुओं से मूढ़ मैं माँ धो रही तेरे चरण l
ज्ञान बिन मैं माँ अधूरी, मुझको विद्या दान दो,
भाव, पिंगल, शब्द भरकर गीत में नवप्राण दो,
माँ तेरी ही मैं कृपा से गा रही तेरा भजन l