Last modified on 1 जनवरी 2017, at 17:34

अवसरवादी / डी. एम. मिश्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:34, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह बात
आदमि‍यों पर भी
लागू होती है
टूटने तक
अपनी शाख़ से
जु़दा नहीं होना चाहिए
और मुक्त होने तक
मिट्टी से
नाता नहीं तोड़ना चाहिए

लेकिन, अवसरवादी
रेत के बीच से
निकल गये और
पुजाऊ पत्थर बनकर
आराध्य हो गये

तीव्र ध्वनियों के बीच
कोई गूँगेपन का
फ़ायदा कमा रहा है
और कोई
संस्कारों की आहट में
कान लगाये
बैठा मुँह ताक रहा है