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किसान / नूतन प्रसाद शर्मा

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जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।
आवव तुम्हीं मन देवता धामी तुम्हीं मन भगवान।

तुम्हर होय ले होथय ये दुनियां के भलाई
खुद लांघन भूखन रहिके बांटथो पर ला मलाई
परमारथ करके तुम मारो नइ शान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।

पर ला बासमति-दुबराज उचहां चांउर देथो
पर खुद कनकी कुटकी, कोहड़ा तक खा लेथो
पर के तन ल हरियाथो पर, खुद हा मरहा जान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।

ए भुइयां म नइ रहितेव त काला खातिन प्रानी
हाय-हाय चिल्‍लावत रोतिन,आफत म जिनगानी
बिना मौत के चरपट होतिन, होतिस जग बेजान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।

सुस्तावो नइ बरसत पानी, जाड़ घलो नइ रीता
भरे मंझनिया मं बइठो नइ, बारो महिना बूता
आगी पानी चिखला माटी सबो तुम्हर मितान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।

जइसे बेर अंजोर बांटथे, पेड़ फल ल लुटाथे
नदियां हर पानी देथे तब जीवन हर बच पाथे
तयं हर घलोक भेद नइ मानस करथस सबके मान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।

ढ़ोंग धतूरा व्यर्थ दिखावा देख तुम्‍हला भागथे
धरती के सेवा करथो, करतब भर हर भाथे
सेवा के बदला मिलथे, राहर कोदो धान।
जब्‍बर तकदीर रिहीस, तब बनके आय हव किसान।