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विवश पशु / शैलेन्द्र चौहान

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चरागाह सूखा है निश्चिंत हैं हाकिम-हुक्काम

नियति मान चुप हैं चरवाहे

मेघ नहीं घिरे बरखा आई, गई

पशु विवश हैं मुँह मारने को किसी की खड़ी फसल में

हँस रहे हैं आकाश में इन्द्र देव