Last modified on 29 जनवरी 2017, at 00:48

माँझी / शील

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 29 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शील |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माँझी भय है, गहरा जल है,
तट अदृश्य है रात।
सम्भलो, देखो, भवन निकट है,
अभी सुदूर प्रभात।

यह नभ के तारे लहरों में,
हँस-हँस होते लीन।
माँझी इस झिलमिल प्रकाश में,
खोजो पन्थ नवीन।

1942