माँझी भय है, गहरा जल है,
तट अदृश्य है रात।
सम्भलो, देखो, भवन निकट है,
अभी सुदूर प्रभात।
यह नभ के तारे लहरों में,
हँस-हँस होते लीन।
माँझी इस झिलमिल प्रकाश में,
खोजो पन्थ नवीन।
1942
माँझी भय है, गहरा जल है,
तट अदृश्य है रात।
सम्भलो, देखो, भवन निकट है,
अभी सुदूर प्रभात।
यह नभ के तारे लहरों में,
हँस-हँस होते लीन।
माँझी इस झिलमिल प्रकाश में,
खोजो पन्थ नवीन।
1942