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वाह कलियुग! / हेमन्त शेष

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वाह कलियुग!

काम पर जाते हुए

हम रोज़ प्रार्थना करते हैं

एक न एक शव को।

घर लौट कर शीशा देखते हैं

प्रणाम करते हुए डरते हैं

हम नित्य

प्रणाम करने वालों के लिए।