Last modified on 1 फ़रवरी 2017, at 17:06

कवि-राजनेता / असद ज़ैदी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असद ज़ैदी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

'चश्म हो तो आईना-खाना है दहर
मुँह नज़र आता है दीवारों के बीच’
(मीर)
जिस जनशत्रु का जन्मदिन आज है भूल गया है कि
उसके दुश्मन का कल था
कुछ साल पुरानी तस्वीर में जिससे वह गले मिल रहा है

आजकल हँसते हुए झिझकता है
सोचता है बाहर जाकर दाँतों का नवीकरण करा ले
फिर बिटिया अन्नो की शादी आ जाएगी
उसके अगले हफ़्ते पिता की बरसी फिर गणतन्त्र दिवस

चेहरा कितनी विकट चीज़ है यह
पता चला है उन्हें फ़ेसबुक से फ़ैनपेज से

चेहरों की एक क़िताब हुआ करती थी
जिसे लोग भूल गए हैं