12.
क्या ?
गंगाराम ने आत्महत्या नहीं की ?
क्यों ?
उल्टे कबिता लिखकर चिपकायी
बिभाग के सूचना पट्ट पर
और कबिता की पच्चीस
फोटो कोपी कराके बिभाग के बरामदे में बिखरा दी
ये देखो.
ll महावन: तीन कविताए ll
1
कुत्ता
वफादारी के गुण के बावजूद
रोटी जब मिलती है
जब वह टांगों में पूंछ दबाता है
मालिक के सामने
बार-बार पूंछ हिलाता है
पांवों को जीभ से चाटता है
इतना करने पर भी
मालिक रोटी को हाथ में पकड़े
अपना मनोरंजन करता है
उसकी बेचैनी और
खाना पाने की उत्सुकता से
अंत में ऊबने पर वह रोटी फेंकता है
दूर दालान में
कुत्ता फिंकी हुई रोटी को
ठीकठाक सी जगह में बैठकर खाता है
दयालु मालिक बैठा देख रहा है
वफादार कुत्ता पेट भर रहा है
2
खरगोश
तुच्छ नहीं
नन्हा प्राणी हूं
इस महावन का
चाहकर भी
शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता
हाथी की तरह ध्यान नहीं खींच सकता
बाघ की तरह अपने भोजन को
वश में नहीं कर सकता
कभी भी कोई बाज मुझे ले
उड़ सकता है आकाश में
फिर भी हूं
अभी हूं
नन्हीं धुकधुकियां शरीर में लिए
अभी हूं
बहेलिए आ गए हैं मुझे खोजते
उनके पगों की दाब सुनते हुए हूं
कितने क्षण शेष हैं मेरे पास
बहुत सारे कि एक भी नहीं
3
मृग
फेंके हुए पत्थर से कटी है गर्दन
कि लोहे की भौंथरी धार से
कौन इस तरह घायल कर
गायब हो गया है इस पार से
यह मृग प्राण छूटने की प्रतीक्षा में
पड़ा है कब से
किसान के कच्चे घर के पीछे
किसान और उसकी पत्नी
देख जाते हैं बार-बार
देखो बेचारा कबसे
दम साधे आंखें फाड़े पड़ा है
प्राण छूटने की प्रतीक्षा में
पास के मृत कुंए की जगत पर खड़ी स्त्री
देख-देख व्याकुल हो रही है
कितना खून बह गया है
गर्दन लथपथ है
अपने ही खून से सिंची है
जो खून भीतर को सींचता था
अब बाहर को सींच रहा है
फिर उस स्त्री के मुंह से निकला
देखो इस बार फिर तड़पा
और यह आखिरी बार
मुंह से लहु भरी हवा निकली
गुजरते राहगीरों ने देखा बहता खून
उनके मन में गंगा नहा आने की
पवित्र इच्छा जगी .