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नरक के फूल / रशीद हुसैन

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काले तम्बुओं में

जंज़ीरों में, नरक की छाया में

उन्होंने मेरे लोगों को बन्दी बनाया है

और चुप रहने को कहा है


वे धमकाते हैं मेरे लोगों को

सिपाहियों के कोड़ों से

भूख और निश्चित मृत्यु के नाम पर

जब मेरे लोग उनका विरोध करते हैं


वे वहाँ से

स्वयं तो चले जाते हैं पर

मेरे लोगों से कहते हैं--

नरक में ख़ुशी से रहो


वे अनाथ बच्चे!

क्या तुमने उन्हें देखा है?

दुर्गति उनकी बरसों से साथी है

वे प्रार्थना करते-करते थक चुके हैं

पर उसे सुनने वाला कोई नहीं है


"तुम कौन हो, छोटे बच्चों !

तुम कौन हो

तुम्हें ऎसी यातना किसने दी है?"


"हम नरक में खिले हुए फूल हैं"

उन्होंने हमसे कहा


"सूरज

इन तम्बुओं में गढ़ेगा

एक शाश्वत पथ

उन लाखों बन्दियों के लिए

जिन्हें वे मनुष्य नहीं समझते"


"सूरज

सुनहरे जीवन का

काफ़िला बन चलेगा

और अपनी स्नेहमयी ओस से हम

ये नारकीय ज्वालाएँ शान्त कर देंगे"