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सुमार्ग / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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देव भूमि भारत में जनम सुफल करि,
अपना जीवन के तोंय संवारोॅ रे बटोहिया।

राम-कृष्णा-हरिशचंद्र-गौतम नांकि बनि,
तोरोॅ सुजस थाती जग राखै रे बटोहिया।
वाणी में मधुरता के गंगा तोंही भागीरथी,
प्रेम-करुणा, शांति धारा धारे रे बटोहिया।

सभ्भें जिनगी में शांति चाहे छै ई दुनिया में,
मनोॅ केॅ सुन्नर पथ तोंय देखाबोॅ रे बटोहिया।
रिश्ता-मर्यादा के जौं सीमा तोड़ी देभोॅ तांेही,
दोसरा सें आस कि तोंय लगैभोॅ रे बटोहिया।

आपनोॅ मनों के तोंय मालिक बनी रहोॅ सदा,
दोसरा केॅ मालिक नै बनाबोॅ रे बटोहिया।
आपनोॅ विचार-व्यवहार में सुधार करि तोहें,
दोसरा के दोस नै निहारोॅ रे बटोहिया।

हंस तेॅ हँसोॅ साथंे मिली मोती चुनि खाय छै,
बगुला मछरी खाना केना छोड़तै रे बटोहिया।
जिनगीं में केकरोॅ रास्ता के काँटा तोंय नै बनिहोॅ,
फूलोॅ सें डगर तोरोॅ सजी जैथों रे बटोहिया।

मनोॅ में खुशी के अमरबेल खिली जैथों,
दिशा-दिशा में सांैरभ बरसतै रे बटोहिया।
भगवानोॅ के अंश तोंय बनोॅ अखंड रूप,
अमर तोरोॅ गाथा लोगैं नांची-गैथों रे बटोहिया।