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गठबन्धन की गाँठ / अमरेन्द्र

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प्रजा यहाँ पर कुछ भी बोले, सही नहीं-सब झूठ
स्वामी जो भी बोले मिथ्या । मंत्राी बोले, सच
नेता को स्वराज मिला है; संसद पर है ‘खच’
पतझर में पत्तों पर भारी इसकी-उसकी ठूँठ ।

दीवारों के छेद दिख रहे, घर के नहीं सुरंग
पिछुवाड़े के पार हवेली, उसको खोजे कौन
सी. बी. आई. के साथी सब चुप्पी साधे मौन
गठबन्धन की मेली कुश्ती से कुश्ती है दंग ।

गोकुल में अब गाय नहीं, चरवाहों की ही भीड़
मुरली लेकर मथुरा में अब मोहन ही जा बैठे
न्याय कहाँ तक कंसराज पर रामराज-सा ऐठे
अण्डे सारे धरती पर हैं, लटक गया है नीड़ ।

इस ठण्डे के मौसम में है क्या ह्निसकी, क्या रम
उससे ज्यादा मजा दे रहा टू जी इस्पेक्ट्रम ।