Last modified on 4 मार्च 2017, at 12:17

कृष्ण विवर / अमरेन्द्र

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 4 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=साध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खोज-खबर संसद में सबकी अगर नहीं तो इसकी
क्या खायेगा, क्या पीयेगा, यह गरीब का टोला
भरी हाट में जिसका जीवन, खाली-खाली झोला
भोर हुआ तो रुदन बढ़ गया, रात हुई तो सिसकी।

एक कट्ठे की है जमीन, तो दर्जन भर के घर हैं
खपरैलों की खड़ी कब्र पर बसती है आबादी
एक रंग के जन्म-मृत्यु, तो सूनी-सूनी शादी
हँसी, खुशी, उल्लास यहाँ केवल कहने ही भर हैं।

सूर्य यहाँ तक आते-आते राह बदल लेता है
यही चाल सीखी है शशि ने, चलता दिशा बदल कर
देखा नहीं अमावस को बस जाते कभी निकल कर
यहाँ नहीं सतयुग या द्वापर, ना तो युग त्रोता है।

यहाँ शीतला की छाया है, उसकी ही ममता है
इस टोले में तंत्रा-मंत्रा का महाकाल रमता है ।