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रेलयात्रा / अमरेन्द्र

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बेटी को एग्जाम दिलाने पत्नी गई है पटना
दूरभाष पर रह-रह कर वह भेज रही अपना मन
अभी पहुँचने वाली ही है ट्रेन; निकट है जंक्शन
मेरा मन भयभीत, कहीं कुछ घट जाए ना घटना।

हो सकता है अगले ही क्षण टूटी मिलें पटरियाँ
टेªन डकैती ही घट जाए दिन ढलने से पहले
या डब्बे में आग लगा दे, सोच-सोच मन दहले
क्यों ना रोक दिया मैंने ही उसके जाते बेरियाँ ।

तभी खबर आई पत्नी की ‘खाना बना दिया था
ढक्कन से सब ढके हुए हैं, दाल, रोटी और सब्जी
दही कटोरे में रक्खा है, खा लेंगे, हो जब जी
कहना भूल गयी थी मैंने खाना बांध लिया था’

सुन कर कहा कि ‘लौटोगी तब खायेेंगे फिर’
खामोशी थी, चारों ठोर हुए थे स्थिर ।