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खुली खिड़की / शम्भु बादल

तुम्हारी खुली खिड़की से
देश लुट जाए
तुम्हें आनन्द है

तुम्हारी खुली खिड़की से
किसी का घर प्रकाशित हो
तुम्हे क्यों एतराज है?