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बम्बई-3 / विजय कुमार

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बसंत के फूल कहाँ झरते हैं

कहाँ झरते हैं बसंत के फूल

मैं ढूंढता हुआ

अम्बरनाथ से वीटी तक

चला आता हूँ

रायबा के चित्रों में भी नहीं थे फूल

भीड़ थी, सिर्फ़ भीड़

जलते हुए इस्पात की सड़कों पर

हिलती-डुलती भागती-सहमती

बेतहाशा भीड़

यही एक वक़्त है

इससे पहले की वे दौड़ते हुए

इमारतों में घुस जाएँ

वे टाईप-मशीनों पर बैठ जाएँ

तुम उनके हाथ थाम कर पूछो

कहाँ झरते हैं बसंत के फूल