Last modified on 12 मार्च 2017, at 09:26

तुम्हारी परछाईं / प्रेरणा सारवान

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वही आँखें
वही भौंहें
वही चेहरा
देवदारु -सी
ऊँची आकृति
जिसे देखने के लिए
मुझे अपनी
झुकी पलकों में
भीगी आँखों को
आकाश तक
उठाना पड़ता है
मेरी उदासी को देख कर
जिसका गमगीन हो जाना
रातों को मेरे हाथों में
हाथ थामे
समन्दर से सहरा की
सुनहरी मिट्टी का
कण -कण भर लाना
मुट्ठियों में
एहसास तो वही है
बस यह तुम नहीं
मेरे साथ
तुम्हारी परछाईं है।