Last modified on 12 मार्च 2017, at 09:33

उस समय / प्रेरणा सारवान

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:33, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शीतल पड़ जाए जब
मेरे घावों की धरती
सूख जाएँ जब
आशाओं की कलियाँ
झुलसी हुई घास को
चीरती हुई
निकल जाएँ जब
मेरी असफलताओं की
कटीली झाड़ियाँ
तड़कने लगें जब
आँसुओं से सूखी
मेरी आँखों की सीपियाँ
तुम सर्दी की
किसी रात
बरस पड़ना
एक भटके हुए
बादल की तरह
हृदय की आग में तपती
मेरी ठंडी पीड़ाओं पर।