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ठहराव-2 / गिरधर राठी
अनिल जनविजय
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सम्भव हुआ जो एक बार
क्या उस की
सम्भावनाएँ अनन्त हैं?
’सावधान! आगे भोपाल है!’
बोल उठा सूत्रधार और
सड़क पर लगा सूचना-पट्ट ।
पीछे?
अगल-बग़ल?--
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