Last modified on 24 मई 2008, at 16:40

ठहराव-2 / गिरधर राठी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 24 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गिरिधर राठी |संग्रह= निमित्त / गिरिधर राठी }} सम्भव हुआ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सम्भव हुआ जो एक बार

क्या उस की

सम्भावनाएँ अनन्त हैं?


’सावधान! आगे भोपाल है!’
बोल उठा सूत्रधार और
सड़क पर लगा सूचना-पट्ट ।


पीछे?

अगल-बग़ल?--

शिलालेख शिलालेख...