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जीत / अरुण कमल

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’इ’ ने सीना तान कर घोषणा की

नेस्तानाबूद हो गया है ’ई’

बस्तियों में एक बिल्ली भी बाक़ी नहीं

ख़ाक हो गया है समूचा मुल्क


बस्त्यों में रोने को एक बच्चा भी बाक़ी नहीं--

’ई’ ने भी घोषणा की--

ख़ाक हो गया है मुल्क सारा

वो देखो जल रहा है ’इ’ का आख़िरी मकान


दोनों अपने-अपने वतन की राख़ पर खड़े थे हँसते

दोनों ख़ुश थे

दोनों थे विजयी, विजयी प्रधान!