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अगहन की दामिनी / अमरेन्द्र

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जहाँ न्याय पर लाठी बरसे, वह शासन क्या शासन
अश्रु-गैस के गोले छूटे, पानी की बौछारें
लोकतंत्रा जब ऐसा खूनी, किसको कहाँ पुकारें
अगहन की जब जले दामिनी, जल जाए सिंहासन !

सिंहासन के सम्मुख नारी की है खींचा-तानी
यह तो काल महाभारत को आमंत्राण है देना
कोई शेष रहेगा कैसे, जिसकी भी हो सेना
समय लिखेगा यह भी कलि की ऐसी क्रूर कहानी !

दिल्ली, तुम किसकी हो, बोलो; सत्ता की, नारी की
बहू-बेटियाँ घर में भी क्यों ऐसी हैं भयभीत
कानों में शीशे-सा गलता सत्ता का संगीत
कहो राजपथ, तेरे घर में कैसी यह तारीकी !

न्यास माँगते बच्चे-युवती पर प्रहार हो स्वाहा !
लोकतंत्रा का गला दबोचे, वह सरकार हो स्वाहा !