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दुर्दिनों में कविता-1 / उदय प्रकाश

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तिनके की उम्मीद में आप करते हैं टेलिफ़ोन

तो सब बाथरूम में होते हैं


आप जेब में सिक्के टटोलते हैं

राज्य परिवहन की बस से बहुत दूर

दोपहर में जाते हैं उनसे मिलने

वे सो रहे होते हैं


बीस साल पुराना बचपन का दोस्त नौकरी से बरख़ास्त होकर

अपने पिता का इलाज कराने आपके घर आ जाता है


कविताएँ जीवन स्तर की तरह ही

निकृष्ट हो जाती हैं

(उदाहरणार्थ यही कविता)


दुर्दिनों में कहीं नहीं मिलता उधार

फिर भी हम खोजते-फिरते हैं प्यार