Last modified on 31 मार्च 2017, at 14:27

लेकिन / आभा पूर्वे

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:27, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह=गुलम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे पाँव
रुक गये थे
जब मैं
आगे बढ़ना चाह कर भी
आगे नहीं बढ़ पायी थी
क्योंकि मेरे पाँव में
बेड़ी पड़ी थी
सामाजिकता की
ढेर सारे बंधनों के बीच
मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से
प्राप्त कर गयी थी
सिर्फ एक नजर के धोखे से।