मेरे पाँव
रुक गये थे
जब मैं
आगे बढ़ना चाह कर भी
आगे नहीं बढ़ पायी थी
क्योंकि मेरे पाँव में
बेड़ी पड़ी थी
सामाजिकता की
ढेर सारे बंधनों के बीच
मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से
प्राप्त कर गयी थी
सिर्फ एक नजर के धोखे से।
मेरे पाँव
रुक गये थे
जब मैं
आगे बढ़ना चाह कर भी
आगे नहीं बढ़ पायी थी
क्योंकि मेरे पाँव में
बेड़ी पड़ी थी
सामाजिकता की
ढेर सारे बंधनों के बीच
मैं तुम्हें संपूर्ण रूप से
प्राप्त कर गयी थी
सिर्फ एक नजर के धोखे से।