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एक अन्य आँसू / मनमोहन

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दिल के संगीन पत्थर से
कभी उठती है कोई भाप
जैसे शताब्दियों के बाद उठी हो
और किसी आँख की धुन्ध बन जाती है।

या कहिए एक गोपनीय आँसू
जो छलक जाता है अकेले में
लेकिन बहता नहीं

यह निरा आँसू नहीं
कोई कठिन निष्कर्ष है

कुछ-कुछ झिलमिलाता है
जैसे यही हो आँख
जिससे एक पल में अब तक न देखा हुआ
सारा एक साथ दिखाई देता है

पराजय में जो बची रही गरिमा
और शोक में जो बचा रहा प्यार
वह ठीक इसी पल देखा जा सकता है

सब कुछ स्वच्छ है
कोई पश्चाताप नहीं
बस, एक ग्लानि है जो कोई बड़ी बात नहीं
हाँ, जो इसकी आब को कुछ मलिन बनाती है

पता नहीं यह कितने प्रकाश वर्ष दूर चल कर आया हो
थका हो छिपना चाहता हो
और अभी वापस लौटना चाहता हो

इसे सहारा दें
और वापस लौटने दें अपनी कन्दरा में।