Last modified on 15 अप्रैल 2017, at 01:21

एक देह / मंगलेश डबराल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:21, 15 अप्रैल 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

त्वचा आवाज़ों को सुनती है
ख़ामोशी की अपनी एक देह है
पैरों में भी निवास करती हैं संवेदनाएँ
पीठ की अपनी ही एक कहानी है
अभी-अभी दबी हथेली का
धीरे-धीरे उभरना
कुछ कहता है देर तक

(1990 में रचित)