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वे सुन्दर लोग / लाल्टू

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आज जुलूस में, कल घर से, हर कहीं से
कौन पकड़ा जाता है, कौन छूट जाता है
क्या फ़र्क पड़ता है
मिट्टी से आया मिट्टी में जाएगा
यह सब क़िस्मत की बात है
इनसान गाय-बकरी खा सकता है तो
इनसान इनसान को क्यों नहीं मार सकता है?

वे सचमुच हक़ीक़ी इश्क़ में हैं
तय करते हैं कि आदमी मारा जाएगा
शालीनता से काम निपटाते हैं
कोई आदेश देता है, कोई इन्तज़ाम करता है
और कोई जल्लाद कहलाता है

उन्हें कभी कोई शक नहीं होता
यह ख़ुदा का करम यह ज़िम्मेदारी
उनकी फ़ितरत है

हम ग़म ग़लत करते हैं
वे
पीते होंगे तो बच्चों के सामने नहीं
अक्सर शाकाहारी होते हैं
बीवी से बातें करते वक़्त उसकी ओर ताक़ते नहीं हैं
वे सुन्दर लोग हैं।

हमलोग उन्हें समझ नहीं आते
कभी-कभी झल्लाते हैं
उनकी आँखों में अधिकतर दया का भाव होता है
अपनी ताक़त का अहसास होता है उन्हें हर वक़्त

हम अचरज में होते हैं कि
सचमुच खर्राटों वाली भरपूर नींद में वे सोते हैं।
वे सुन्दर लोग।